

दशहरे का आह्वान
चलो आज हम रावण मारें
चलो आज हम लंका जारें।
घर, स्कूल, खेत, चौबारे
आज बन रहे लंका सारे
देखो अपने बाहर रावण
पहचानो अपने भीतर के रावण
एक अकेली सिया बेचारी
बीस भुजा, दस सिर का रावण
नोच रहे हैं जिस्म हमारा
लूट रहे हैं कोमल बचपन
कहाँ राम? हनुमान कहाँ हो?
भारत माँ की शान कहाँ हो?
छोड़ो सुख-सुविधा की अयोध्या,
राम कथा के नाशक छोड़ो
तुम्हीं राम, हनुमान तुम्हीं हो
चलो हवाओं का रूख मोड़ो।
चलो आज हम रावण मारें
चलो आज हम लंका जारें
– Kailash Satyarthi